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जूना अखाड़ा, जिससे जुड़े थे मॉब लिंचिंग का शिकार हुए साधु

रिपोर्टर – Gaurav kumar

महाराष्ट्र के पालघर में 16 अप्रैल को दो साधुओं की कथ‍ित तौर पर मॉब लिंचिंग कर दी गई, जिसमें उनकी मौत हो गई. वे दोनों ही साधु जूना अखाड़ा से जुड़े हुए थे. आरोप है कि भीड़ ने इन दोनों साधुओं को कार से उतारकर पीट-पीटकर मार डाला. साथ में इनके ड्राइवर की भी इस वारदात में जान चली गई है. आइए जानते हैं चार लाख से ज्यादा नागा साधुओं के इस अखाड़े के बारे में. क्या है इसका इतिहास. इस अखाड़े से जुड़ने के नियम.

बता दें कि पालघर में भीड़ द्वारा हत्या का श‍िकार हुए स्वामी कल्पवृक्ष गिरि (70) और सुशील गिरि (35) अपने गुरु के अंतिम संस्कार में शामिल होने गुजरात जा रहे थे. घटना को लेकर एक वीडियो भी वायरल हुआ था. घटना के विरोध में जूना अखाड़े ने कड़ी आपत्त‍ि जताई है. साथ ही 3 मई के बाद लॉकडाउन खत्म होते ही महाराष्ट्र तक कूच करने की चेतावनी भी दी है.

जूना अखाड़े की स्थापना साल 1145 में उत्तराखण्ड के कर्णप्रयाग में हुई थी. इसे भैरव अखाड़ा भी कहते हैं. अखाड़े के ईष्ट देव रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं. अखाड़े का केंद्र वाराणसी के हनुमान घाट पर है. वर्तमान में भी हरिद्वार में मायादेवी मंदिर के पास इनका आश्रम है. अखाड़े से जुड़ने वाले संन्यासी आम जनजीवन से दूर कठोर अनुशासन में रहते हैं.

बता दें कि इस अखाड़े के नागा साधु जब शाही स्नान के लिए संगम की ओर बढ़ते हैं तो मेले में आए श्रद्धालुओं समेत सभी इस अद्भुत दृश्य को देखते रह जाते हैं. वर्तमान में अखाड़े के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज हैं. इस पद को अखाड़े का महामंडलेश्वर भी कहा जाता है.

जूना अखाड़े की विशालता की बात करें तो कहा जाता है कि करीब 13 अखाड़ों में से जूना अखाड़ा सबसे बड़ा अखाड़ा है. इस अखाड़े में संन्यासियों की संख्या चार लाख से भी अधि‍क है. इनमें से अधिकतर नागा साधु हैं. ये भी प्रचलि‍त है कि नागा साधु तीन प्रकार के योग करते हैं जो उनके लिए ठंड से निपटने में मददगार साबित होते हैं. वे अपने विचार और खानपान, दोनों में ही संयम रखते हैं. नागा साधु एक सैन्य पंथ है और वे एक सैन्य रेजीमेंट की तरह ही बंटे हैं. त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम से वे अपने सैन्य दर्जे को दर्शाते हैं.

ऐसे बने अखाड़ा

ऐसा बताते हैं कि हिंदू धर्म के संत अध्यात्म‍िक गुरु ने उस वक्त अखाड़ों का निर्माण किया जब देश पर कई तरह के आक्रमण हो रहे थे. अखाड़ा शब्द मल्ल युद्ध के केंद्र से बना है. जहां संतों को धर्म और ज्ञान के साथ शारीरिक श्रम और अस्त्र शस्त्र की श‍िक्षा के लिए भी प्रेरित किया जाता है. उनका मानना था कि कसरत और कुश्ती से भी मन मजबूत होता है.

बाद में आधुनिक समय के साथ साधुओं के अखाड़ाें के स्वरूप भी बदलने लगे. आजादी के बाद अखाड़े ने अपना सैन्य चरित्र त्याग दिया. अब वर्तमान में जूना अखाड़ा एक शास्त्रार्थ, बहस और धार्मिक विचार-विमर्श के केंद्र के तौर पर पूरे व‍िश्व में जाना जाता है.

जूना अखाड़े की पूरी व्यवस्था अपनी तय प्रणाली पर निर्भर है. यहां साधुओं के 52 परिवारों (सभी साधु) के सभी बड़े सदस्यों की एक कमेटी बनती है. ये सभी लोग अखाड़े के लिए सभापति का चुनाव करते हैं. इसके अलावा अखाड़े में श्री रामता पंच का भी चुनाव होता है. ये अखाड़े के चल सदस्य होते हैं जो ईष्ट देवता की पूजा करते हैं और अखाड़े की रक्षा करते हैं.

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