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कैशबैक / एक साल में कंपनियों ने 10 हजार करोड़ बांटे, 7 साल और मिलेगा

मुंबई : डिजिटल पेमेंट, विशेषतौर पर यूपीआई (यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस) से भुगतान को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने इस बार बजट में कई प्रावधान किए हैं। भास्कर ने डिजिटल पेमेंट ट्रेंड की पड़ताल की तो पता चला कि कैशबैक ऑफर्स से भी इसे खूब बढ़ावा मिल रहा है।

पेमेंट्स काउंसिल ऑफ इंडिया के मानद सदस्य और फिनटेक कंवर्जेंस काउंसिल के चेयरमैन नवीन सूर्या ने बताया कि विभिन्न कंपनियों के आंकड़ों और अनुमान के मुताबिक पिछले वित्तीय वर्ष में ही करीब 8 से 10 हजार करोड़ रुपए कैशबैक बांटा गया है। वे बताते हैं कि यूपीआई प्लेटफॉर्म पर आधारित ऐप्स पर ट्रांजेक्शन तेजी से बढ़े हैं। नेशनल पेमेंट्स काॅरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) के अनुसार 2018-19 में कुल 535 करोड़ यूपीआई ट्रांजेक्शन हुए, जिनकी वैल्यू 8.77 लाख करोड़ रु. है। यह पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 8 गुना ज्यादा है। सबसे ज्यादा कैशबैक यूपीआई आधारित ऐप्स (गूगल पे, फोन पे और पेटीएम आदि) ही दे रही हैं।

नवीन के मुताबिक ज्यादातर पेमेंट ऐप्स अभी घाटे में हैं। फिर भी वे कैशबैक दे रहे हैं क्योंकि उन्हें ग्राहकों की संख्या और ब्रैंड वैल्यू बढ़ानी है। इसलिए कैशबैक का यह सिलसिला अभी 5-7 साल तक और जारी रहेगा। उनके मुताबिक कैशबैक भारत में नए ग्राहक बनाने का सबसे आसान तरीका है। वहींं गूगल और बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) की रिपोर्ट ‘डिजिटल पेमेंट्स 2020’ के मुताबिक भारत में छोटे शहरों में 57% लोग ऑफर्स की वजह से डिजिटल पेमेंट इस्तेमाल करते हैं। बड़े मेट्रो शहरों में भी यह आंकड़ा 48% है।

नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि सरकार ने कैशबैक-बोनस में 495 करोड़ रु. बांटने की योजना बनाई है। पेटीएम ने पिछले साल फेस्टिव सीजन में 501 करोड़ रु. का बजट कैशबैक के लिए रखा था। डिजिटल पेमेंट्स के लीडर्स में से एक पेटीएम के प्रवक्ता ने भी बताया कि कैशबैक ग्राहकों को जोड़ने में मदद करता है। अगर ग्राहक लंबे समय तक जुड़ता है तो कैशबैक देना हमारे लिए भी फायदेमंद साबित होता है।

पेटीएम फिलहाल अपने प्लेटफॉर्म पर 200 से ज्यादा सेवाएं दे रहा है और इसपर पिछले एक साल में 5.5 अरब ट्रांजेक्शन हुए। हालांकि गूगल पे में प्रोडक्ट मैनेजमेंट के निदेशक अंबरीश केंघे का मानना है कि कैशबैक के बल पर ग्राहकों को बनाए नहीं रख सकते। गूगल पे को ज्यादातर लाभ रेफरल से मिल रहा है। अंबरीश यह भी कहते हैं कि कैशबैक से ज्यादा से ज्यादा यूजर्स यूपीआई पेमेंट और ऐप के जरिए से बैंक-टू-बैंक ट्रांसफर अपनाने के लिए प्रेरित होते हैं।

‘4 साल में डिजिटल पेमेंट मार्केट 1 ट्रिलियन डॉलर का हो जाएगा’
देश में ई-कॉमर्स मार्केट में भी इजाफा होने से डिजिटल पेमेंट बढ़ेगी। फोन पे ऐप के प्रवक्ता का भी मानना है कि भारत में डिजिटल पेमेंट का ट्रेंड अभी शुरुआती दौर में ही है। नीति आयोग की रिपोर्ट भी बताती है कि 2023 तक देश में डिजिटल पेमेंट का मार्केट 1 ट्रिलियन डॉलर का हो जाएगा। इसमें मोबाइल पेमेंट की हिस्सेदारी 13 लाख करोड़ से ज्यादा की हो जाएगी। फोन पे पर फिलहाल 15 करोड़ यूजर्स हैं और इसपर 29 करोड़ ट्रांजेक्शन हो चुके हैं।

कंपनियां क्यों देती हैं कैशबैक?
नवीन सूर्या बताते हैं कि कैशबैक देने से जितने ज्यादा ग्राहक कंपनियों से जुड़ते हैं, कंपनीज की ब्रैंड वेल्यू उतनी ही ज्यादा बढ़ती है। इसका फायदा उन्हें उनके दूसरे बिजनेस और सर्विसेस में मिलता है। दरअसल ज्यादातर कंपनियों के लिए कैशबैक उनके मार्केटिंग बजट का ही हिस्सा होता है। एक बार ग्राहक संख्या बढ़ने के बाद कंपनियां धीरे-धीरे कैशबैक देना कम भी कर देती हैं।

कैशबैक के खतरे भी हैं
कैशबैक के जरिए फ्रॉड की आशंका भी रहती है। इसी साल मई में पेटीएम के चेयरमैन विजय शेखर शर्मा ने बताया था कि छोटे व्यापारियों द्वारा कैशबैक फ्रॉड करने से कंपनी को 10 करोड़ का नुकसान हुआ था। कैशबैक के लालच में आम यूजर नकली ऑफर्स का शिकार भी हो सकते हैं। आईएमचीटेड डॉट कॉम के सीईओ सी.एस. सुधीर के मुताबिक अगर किसी ऑफर के साथ उसके स्पष्ट नियम व शर्तें न दी हों तो उसके नकली होने की आशंका है।

ऑफर देने वाली ऐप और वेबसाइट की खराब डिजाइन, उसकी भाषा-व्याकरण में गलतियां, डाउनलोड करने पर बहुत कम साइज और परमिशन की मांग को देखते हुए तय किया जा सकता है कि वेबसाइट या ऐप नकली है या नहीं। आमतौर पर कैशबैक के लालच में लोग अपनी सभी जानकारियां दे देते हैं, जिससे धोखाधड़ी का खतरा बढ़ जाता है। सुधीर बताते हैं कि वेबसाइट की लिंक HTTPS से शुरुआत होनी चाहिए। ‘S’ का मतलब सुरक्षित होता है और ऐसी वेबसाइट पर पेमेंट सुरक्षित रहते हैं।

3 तरह के कैशबैक और कैसे मिलते हैं

सीधे अकाउंट में: गूगल पे, फोन पे जैसे एप्स डिजिटल पेमेंट या ट्रांसफर पर सीधे बैंक अकाउंट में पैसा देते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि अपने पास पैसा होल्ड करने के लिए उन्हें आरबीआई से अनुमति लेनी होगी। जैसे पेटीएम के पास वॉलेट में पैसे रखवाने के लिए लाइसेंस है। ज्यादातर कैशबैक बैंक खाते में ट्रांसफर या ऑनलाइन शॉपिंग पर ही मिल रहा है।

केवल ऐप में: कई ट्रैवल, फूड, रिटेल एप्स खुद के वॉलेट में ही कैशबैक देती हैं, जो सिर्फ उनकी एप पर ही इस्तेमाल कर सकते हैं। कैशबैक बैंक में नहीं जाता और लाभ लेने के लिए एप पर ही दोबारा खरीदारी करनी होती है। यानी डिस्काउंट तो मिलता है, मगर अगली खरीद पर। कई एप्स में ऐसे कैशबैक की एक्सपायरी डेट भी होती है।

क्रेडिट कार्ड में: कई क्रेडिट कार्ड कंपनियां भी तय वेबसाइट्स या ऐप्स से खरीदारी करने पर कैशबैक देती हैं। यह पैसा बाद में क्रेडिट कार्ड बिल में से कम हो जाता है। एक सीमा से अधिक खर्च करने पर ही ऑफर मिलता है और निश्चित सीमा तक ही कैशबैक मिलता है।

अभी और कंपनियां आएंगी, इसलिए कुछ सालों तक मिलता रहेगा कैशबैक
देश में बढ़ता डिजिटल पेमेंट मार्केट अभी और नए खिलाड़ियों को मैदान में उतारेगा। इससे उनके बीच ऑफर्स और कैशबैक देने की होड़ जारी रहेगी। नवीन बताते हैं कि आने वाले समय में और भी ग्लोबल कंपनियां भारतीय मार्केट में उतरेंगी।

वाट्सएप जल्द ही अपनी पेमेंट सर्विस शुरू कर रहा है, जिसका ट्रायल चल रहा है। ट्रूकॉलर एप यह सर्विस पहले ही शुरू कर चुकी है। चीन की टेंसेंट कंपनी ‘वीचैट पे’ सेवा भारत में शुरू कर सकती है। इन सभी को मार्केट में स्थापित होने के लिए ऑफर्स देने होंगे और कैशबैक ऑफर इस मामले में सबसे ज्यादा सफल साबित हुए हैं।

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