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अमित शाह खुद तय करेंगे मुद्दे, तीन दिन की बैठकों का कोई एजेंडा नहीं

भोपाल। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और उनकी टीम मप्र की सत्ता और संगठन को कसौटी पर कसेगी। पार्टी के छोटे से छोटे कार्यक्रम से लेकर सत्ता की नीतियों की समीक्षा खुद अमित शाह करेंगे। भाजपा के इतिहास में पहली बार कोई राष्ट्रीय अध्यक्ष तीन दिन के प्रवास पर मप्र आ रहा है। खास बात यह है कि इस प्रवास में होने वाली बैठकों के लिए मप्र के संगठन के पास कोई एजेंडा नहीं है। दरअसल, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह खुद बैठक के मुद्दे तय करेंगे।

प्रदेश भाजपा के नेता अपनी-अपनी जिम्मेदारियों के हिसाब से बैठक की तैयारी तो कर रहे हैं, लेकिन किसी को नहीं पता कि अमित शाह बात क्या करेंगे? इसी वजह से पार्टी नेताओं और मंत्रियों की धड़कनें तेज हैं। सूत्रों के मुताबिक तीन दिन होने वाली बैठकों का एजेंडा खुद शाह अपने साथ लाएंगे। हालांकि पार्टी अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान का कहना है कि एजेंडा गुप्त रखा गया है।

अमित शाह की आगवानी के लिए भाजपा ने पूरे शहर की सड़कों और चौराहों को सजाया है। इसके साथ ही प्रदेश कार्यालय की भी साज-सज्जा की गई है। बैठक में हिस्सा लेने वाले सभी नेताओं को एक दिन पहले ही भोपाल पहुंचने के निर्देश दिए गए थे।

भोजन बनाने पानी इंदौर से आया

पार्टी कार्यालय में होने वाली बैठकों के लिए इंदौर से हलवाई बुलाए गए हैं। सूत्रों के मुताबिक ये हलवाई खाना बनाने के लिए पानी भी इंदौर से ही लेकर आए हैं।

पहले दिन पांच बैठकें

अमित शाह दौरे के पहले प्रदेश भाजपा कार्यालय में पांच बैठकें लेंगे। पहली बैठक पार्टी के सभी पदाधिकारियों के साथ संयुक्त रूप से होगी। इसके बाद प्रदेश पदाधिकारियों, जिलाध्यक्षों और कोर ग्रुप की बैठक होगी। फिर सांसद, विधायक और कोर गु्रप के साथ चर्चा होगी। शाम पांच बजे समन्वय भवन में प्रबुद्ध नागरिक सम्मेलन में भाग लेंगे। शाम सात बजे निगम मंडल अध्यक्षों की बैठक होगी और रात साढ़े आठ बजे मंत्रियों के कामकाज की समीक्षा करेंगे।

एजेंडे में मप्र भाजपा के इन मुद्दों को भी शामिल करें शाह

अपराधियों को पार्टी में जगह: पार्टी के कई पदों पर ऐसे लोगों को जगह दे दी गई, जो आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं। आईएसआई जासूसी कांड से लेकर कॉल गर्ल मामले में भाजपा के पदाधिकारी फंस चुके हैं।

निष्क्रिय मोर्चे: पार्टी के मोर्चे इतने निष्क्रिय हैं कि गठन के दस महीने बाद सिर्फ एक-एक बैठकें ही हो पाई हैं। ये बैठकें भी अमित शाह के दौरे की वजह से आनन-फानन में हुई हैं।

काम क्या करना है, यही नहीं पता: पार्टी द्वारा गठित किए गए नए विभागों के कामकाज के बारे में किसी को ठीक-ठीक पता ही नहीं है। हालत यह है कि नेताओं को संगठन में एडजस्ट करने के इरादे से नियुक्तियां कर दी गईं।

दर्जन भर जिलों में कार्यालय नहीं: 14 साल से सत्ता में होने के बावजूद करीब एक दर्जन जिलों में पार्टी के खुद के कार्यालय ही नहीं है। कई बार इस बारे में कार्यकर्ताओं की ओर से मांग उठ चुकी हैं।

विधायकों की लोगों से दूरी: पार्टी के विधायक जनता से दूर होते जा रहे हैं। ज्यादातर के खिलाफ एंटी इनकमबेंसी है। किसान आंदोलन के बाद निकली किसान संदेश यात्रा में कई जगह विधायकों को क्षेत्र में घुसने तक नहीं दिया गया।

मंत्रियों की बढ़ती शिकायतें: विधायकों और कार्यकर्ताओं की यह शिकायतें आम हो चुकी हैं कि मंत्री उनकी सुनते नहीं हैं। ऐसे में विधायक अपनी भड़ास विधानसभा में निकालते हैं।

मंत्रियों की विभाग में पकड़ नहीं: सरकार के कई मंत्रियों की अपने विभाग में पकड़ ही नहीं है। कई मंत्री यह शिकायत तक कर चुके हैं कि विभाग के अधिकारी उनकी सुनते नहीं है।

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