प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों ने 25 से 80 लाख में बेच दीं 94 सीट
जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने प्राईवेट मेडिकल कॉलेजों द्वारा 94 मेडिकल सीट 25 से 80 लाख रुपए में बेचे जाने के आरोप पर सरकार से जवाब मांग लिया है। इस सिलसिले में प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा और डीएमई के अलावा इंडैक्स इंदौर, एनएल भोपाल, अमलतास देवास, चिरायु भोपाल और आरकेडीएफ भोपाल को नोटिस जारी किए हैं।
गुरुवार को न्यायमूर्ति आरएस झा व जस्टिस नंदिता दुबे की युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी पृथ्वी नायक, रीवा निवासी शुभम तिवारी, रायसेन निवासी वत्सला शुक्ला, ग्वालियर निवासी आदित्य श्रीवास्तव, इंदौर निवासी हिमानी, इंदौर निवासी ऋत्विका, खंडवा निवासी शेख इसरार, नीमच निवासी यश प्रताप आहूजा और पन्ना निवासी अंकिता अग्निहोत्री की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी ने पक्ष रखा।
अयोग्यों से रकम लेकर खेला खेल
उन्होंने दलील दी कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक से एमबीबीएस/बीडीएस काउंसिलिंग पूरी पारदर्शिता के तहत आयोजित करने के सख्त निर्देश के बावजूद राज्य में पूर्व वर्षों की तरह मनमानी की गई। इसके तहत सर्वथा योग्य नीट क्वालिफाई छात्र-छात्राओं का हक मारते हुए अपेक्षाकृत अयोग्य छात्र-छात्राओं को रकम लेकर एमबीबीएस सीटें बेच दी गईं।
महज 5 घंटे में कॉलेज पहुंचने की शर्त
हाईकोर्ट को अवगत कराया गया कि 10 सितम्बर को 7 बजे मॉप-अप ऑनलाइन काउंसिलिंग की सूची डाली गई। इसके बाद फरमान जारी किया गया कि जो छात्र-छात्रा रात्रि 11.59 तक कॉलेज पहुंचकर दाखिले की प्रक्रिया पूरी करेंगे केवल उन्हें एमबीबीएस सीट मिलेंगी।
यदि इस टाइमिंग चूके तो संबंधित सीट किसी और को दे दी जाएगी। ऐसे में सवाल उठता है कि ऑनलाइन जानकारी मिलने के बाद दूर-दराज के छात्र-छात्राओं द्वारा अपने लिए आवंटित कॉलेज तक की दूरी महज 5 घंटे में भला कैसे तय की जा सकती थी? वह भी तक जब मध्यप्रदेश की खस्ताहाल सड़कों का हाल किसी से छिपा नहीं है।
400 वालों को सीट 454 वाले वंचित
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि उनके अंक 545 के लगभग हैं, जबकि जिन 94 अयोग्यों को सीटें बेची गईं उनके अंक 400 के लगभग हैं। इससे साफ है कि प्राईवेट मेडिकल कॉलेजों ने डीएमई के नाक के नीचें खुली धांधली की है।
48 एनआरआई सीट भी अयोग्यों को
याचिका में एक अन्य आरोप यह लगाया गया है कि इस बार 48 एनआरआई कोटे की सीटें रसूखदारों के बच्चों को बेच दी गई हैंं। इनमें से ज्यादातर एनआरआई की परिभाषा के दायरे से बाहर आते हैं।