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लगता है कि किसी प्ले स्कूल में आ गए (सफलता की कहानी)

हरदा जिले के खिरकिया तहसील मुख्यालय के एनआरसी सेंटर को देखें तो आपको लगेगा कि किसी प्ले स्कूल में आ गए हों। दीवारों पर जंगली जानवरों का चित्रण। साफ-सुथरे बेड, बच्चे खिलौना गाड़ियों में घूमते हुए। यह खूबसूरत सा एनआरसी सेंटर पिछले नौ सालों से बच्चों के सुपोषण के लिए कार्य कर रहा है। यहाँ एक बार में 20 बच्चों के पोषण की व्यवस्था है। वातावरण हाइजनिक है। यहाँ माँ और बच्चों के रहने-खाने की व्यवस्था है। बच्चे यहाँ सहज महसूस कर सकें, इसके लिए पूरी दीवारों में रंगीन चित्र हैं। चिकित्सा अधिकारी डॉ. आरके विश्वकर्मा ने बताया कि एनआरसी सेंटर में बच्चों को घर से भी बढ़कर डिजनी लैंड जैसा एहसास हो सके, इसके लिए कलाकारों को बुलाकर चित्र बनावाए। यह अच्छा प्रयोग हुआ और बच्चे यहाँ बहुत सहज महसूस करते हैं। एनआरसी का रिकवरी रेट प्रतिशत 85 है और यहाँ 15 दिन बच्चों को रखा जाता है। इसके बाद लगातार फालोअप के चार सेशन होते हैं जिसमें यह देखा जाता है कि बच्चे पोषण युक्त आहार ले रहे हैं या नहीं। एनआरसी सेंटर में अब तक 2 हजार 172 बच्चों को रखा गया है। यहाँ फीडिंग डिमॉस्ट्रेटर मोनिका बारस्कर ने बताया कि दूरस्थ क्षेत्रों से अपने बच्चों को लेकर माताएँ आती हैं। शुक्रवार को जटपुरामाल से रेखा अपनी छोटी सी बेटी माया को लेकर आई थी। रेखा ने बताया कि माया तीन माह की हो गई है, इसकी जाँच करने पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने बताया कि माया कुपोषित है। इसे पोषण पुनर्वास केंद्र में रखोगी तो यह पूरी तौर पर पोषित हो जाएगी तो हम लोग इसे लेकर यहाँ आए हैं। रूनझुन से अपने बेटे धर्मवीर को लेकर पहुँची रामप्यारी ने बताया कि बेटे की कमजोरी को देखते हुए यहाँ लेकर आई, अब यह अच्छा हो रहा है। इसी तरह मोरगढी से आई आशा ने अपनी बेटे गोलू के बारे में बताते हुए कहा कि पहले यह खाना नहीं खाता था, यहाँ डाक्टर साहब ने हमें कुछ उपाय बताए, इसके बाद खाना खा रहा है और हमें बहुत अच्छा महसूस हो रहा है। उल्लेखनीय है कि एनआरसी सेंटर में छह महीने से पाँच साल तक के कुपोषित शिशुओं को रखा जाता है। इनकी पहचान आशा या आँगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से की जाती है। एनआरसी सेंटर में एक एमडी, एक फीडिंग डिमांसट्रेटर, एक सिस्टर, तीन वार्ड अटेंडेंट तथा दो कुक का स्टाफ काम कर रहा है।

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