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भारत-अमेरिका परमाणु समझौता के लागू होने की कोई संभावना नहीं : पूर्व सीनेटर

वाशिंगटन: अमेरिका के एक पूर्व शीर्ष रिपब्लिकन सीनेटर का कहना है कि भारत-अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौता ‘‘शुरुआत में ही अर्थहीन’’ हो गया था क्योंकि उस पर पुख्ता तैयारी के बिना हस्ताक्षर किया गया था. अमेरिकी सीनेट में आर्म्स कंट्रोल सब कमिटी के चेयरमैन रह चुके पूर्व सीनेटर लैरी प्रेस्लर ने वाशिंगटन में कहा कि समझौते की काफी तारीफ की गई लेकिन ‘‘इसके लागू होने की कोई संभावना नहीं है क्योंकि इसमें जवाबदेही के मसले को नहीं सुलझाया गया और उसका हल नहीं निकाला गया.’’ उन्होंने कहा कि भारत-अमेरिका परमाणु सौदा ‘‘शुरुआत में ही अर्थहीन’’ हो गया था.

प्रेस्लर ने कहा कि असैन्य परमाणु समझौते पर भारत या अमेरिका में ‘‘जमीनी स्तर पर कोई पुख्ता तैयारी नहीं की गई.’’ भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग समझौते पर अक्टूबर 2008 में हस्ताक्षर किए गए. इस समझौते से भारत के परमाणु ऊर्जा उत्पादन को अहम बढ़त मिली.

प्रेस्लर शीर्ष अमेरिकी थिंक टैंक द हडसन इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित कार्यक्रम में परमाणु नि:शस्त्रीकरण से संबंधित अपनी नई किताब पर बोल रहे थे. उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘…इसमें कुछ नहीं था. यदि आप इसे देखें तो यह मुख्यत: हथियारों की बिक्री का सौदा है.’’ उन्होंने दावा किया कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा ‘‘व्यापक पैमाने पर हथियारों को बेचने की यात्रा’’ थी.

पूर्व अमेरिकी सीनेटर ने कहा, ‘‘उस समय राष्ट्रपति ओबामा की भारत की अंतिम यात्रा हथियारों को बेचने की यात्रा थी और भारत के गरीब लोगों को उन सभी नए हथियारों के लिए भुगतान करना है जिन्हें उनका देश अमेरिका से खरीद रहा है. लेकिन हमें सावधानी बरतनी होगी. यह काफी हद तक महत्वूपर्ण है क्योंकि भारत ने उन्हीं शर्तों पर सौदे को स्वीकार किया है.’’

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