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उत्तर प्रदेश से विशेष ग्राउंड रिपोर्ट / ताज वाले आगरे में ‘राज’ के मैनेजमेंट की परीक्षा

ताज नगरी आगरा और फतेहपुर-सीकरी में प्रारंभिक व्यूह रचना भाजपा, कांग्रेस और गठबंधन तीनों के ही मैदान के अनुरूप थी। जंग तेज हो रही है, खूब दांव चले जा रहे हैं। अब चुनावी मैनेजमेंट पर दारोमदार है। आगरा से ज्यादा महत्वपूर्ण इस बार फतेहपुर-सीकरी की सीट बन गई है। आगरा से दो बार समाजवादी पार्टी के सांसद रह चुके कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर के सामने भाजपा ने जाट नेता बाबूलाल चौधरी की जगह राजकुमार चाहर को उतारा है। राजकुमार की खासियत यह है कि उनकी ठाकुर वोट बैंक पर पकड़ दिखती है। बसपा ने यहां भगवान शर्मा उर्फ गुड्‌डू पंडित को मौका दिया है। उन्हें उतारने की एक अहम वजह जातीय फैक्टर है। यहां ठाकुरों के बाद ब्राह्मण निर्णायक भूमिका में दिखते हैं। गुड्‌डू को टिकट इसलिए भी मिला है, क्योंकि बसपा के कद्दावर नेता रामबीर उपाध्याय की भाजपा नेताओं के साथ गलबहियां काफी चर्चित रही हैं। दूसरी दावेदार सीमा उपाध्याय ने मैदान में उतरने से मना कर दिया।

यूं गठबंधन के तीन दलों- सपा, बसपा और रालोद के पुराने वोट बैंक को गिन लें तो आमने-सामने का मुकाबला बनाने के लिए उनकी व्यूह रचना बुरी नहीं थी। लेकिन गुड्डू की दबंग छवि, बाहरी होने और कुछ बड़े लोगों द्वारा पार्टी छोड़ने से वे तीसरा कोना मजबूती से नहीं बना पा रहे हैं।

इधर, राज बब्बर ने तीन पूर्व विधायकों को तोड़कर अपनी सेना सजाने की शुरुआत की थी। डॉ धर्मपाल की एत्मादपुर तो ठाकुर सूरजपाल की सीकरी के ठाकुरों व जाटवों पर अच्छी पकड़ मानी जाती है। इसी तरह भगवान सिंह का खैरागढ़ के कुशवाहों पर अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है। बुलंद दरवाजे के सामने सब बुलंदी से कह रहे हैं कि बुलंद नेता तो बब्बर ही है। किले के बाहर हाईवे प्लाजा में युवा व्यापारी विशाल शर्मा युवाओं के बदले तेवरों पर कहते हैं- पता नहीं लोग सच सुनना भी नहीं चाहते। किरावली, मिदापुर में तो लगता है सब संघ के प्रचारक बैठे हैं। कांग्रेस की हवा बनाने के लिए 15 को जरार में राहुल- प्रियंका की रैली रखी गई। राज बब्बर ने जनता के फीड बैक के हिसाब से एक क्षेत्रीय घोषणा पत्र भी जारी किया है जिसमें पुराने कोल्ड स्टोरेज की क्षमता बढ़ाने, नए कोल्ड स्टोरेज बनाने, आलू प्रसंस्करण यूनिट और देहात में एक बड़ा ओवर ब्रिज का भी वादा है। अगर बब्बर सभी वर्गों में दिख रहे हैं तो चाहर भी दिख रहे हैं। मुकाबला कड़ा है।

आगरा में विरोध झेल रहे रामशंकर कठेरिया को इटावा भिजवाने वाले वाले प्रदेश के मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने धनगरों को सुरक्षित श्रेणी में डलवा कर संसद जाने की राह बना ली। भगवान सिंह रावत और फिर कठेरिया ने यहां जो भगवा गढ़ बनाया वही उनकी मजबूती है। बीच में दो बार जरूर राज बब्बर ने यहां सपा का झंडा गाड़ा। कांग्रेस से यहां पूर्व चीफ इनकम टैक्स कमिश्नर प्रीता हरित मैदान में हैं। लेकिन बब्बर उन्हें खास मदद नहीं कर पा रहे हैं। यहां ज्योतिरादित्य सिंधिया के रोड शो का भी कोई खास असर नहीं दिखा। भाजपा के लिए यह 80% हिंदुओं का शहर है। बसपा ढाई लाख एससी और करीब इतने ही मुसलमानों के सहारे जीत की उम्मीद कर रही है। बसपा ने यहां मनोज सोनी को टिकट दिया है। यहां संघ मोदीराज के लिए जान लड़ाए हुए है। आखिरी दिन तक रोड शो के जरिए सभी पक्ष माहौल बनाएंगे।

एएमयू वाले अलीगढ़ में मुसलमान साढ़े तीन लाख हैं, इतने ही एससी-एसटी हैं। इन दोनों का जितना जोड़ है, उतने ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य हैं। चार लाख लोध, यादव और जाट हैं। यहां प्रियंका का असर देख माहौल गरमाने के लिए मोदी की रैली रखी गई। भाजपा के निवर्तमान सांसद सतीश कुमार गौतम को चुनौती देने के लिए कांग्रेस ने कई चुनावों का अनुभव रखने वाले विजेंद्र सिंह को पांचवीं बार मैदान में उतारा है तो गठबंधन के अजीत बालियान इस मैदान का तीसरा कोना हैं। मुस्लिम मतों में बंटवारा देख भाजपा अभी खुश दिख रही है। बाकी हवा तो यहां भी वैसी है जैसे पूरे ब्रज में।

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