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प्रार्थना ऐसी संस्तुति जो बिना देरी इष्ट देव तक पहुंचाती है: आचार्य शास्त्री

श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन आचार्य गौरव कृष्ण शास्त्री ने कहा प्रार्थना एक ऐसी संस्तुति है, जो बिना किसी देरी और सहारे के तत्क्षण परमात्मा के पास पहुंच जाती है। संसार के किसी वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के लिए पोस्टमैन की जरूरत पड़ती है, लेकिन हृदय से समर्पित की गई प्रार्थना एक ऐसी अभिव्यक्ति है, जो बिना किसी पोस्टमैन के ही तत्क्षण गंतव्य स्थान तक पहुंच जाती है। कथा क्रम में कपिल देव जी संवाद पर प्रकाश डालते हुए आचार्य श्री ने कहा कि देवहूति ने पति कर्दम के वन की ओर चले जाने पर पुत्र कपिल के पास आई और प्रार्थना करते हुए बोली कि हे प्रभु हमे संसार के बंधन से मुक्त होने का मार्ग प्रदान करें।

मां देवहूति की प्रार्थना को भगवान कपिल ने स्वीकार किया और ऐसा उपदेश दिया कि देवहूति संसार सागर से मुक्त होकर सिद्धिरा नाम की नदी के रूप में परणित होकर मुक्त हो गई। ध्रुव चरित्र पर व्याख्यान करते हुए उन्होंने कहा कि मात्र 5 वर्ष की अवस्था में ध्रुव को दर्शन देकर अखंड राज्य प्रदान करते हुए उनके लिए प्रभु ने ध्रुव लोक का निर्माण कर दिया। प्रभु के दर्शन के लिए व्यक्ति को सत्संग सेवा सुमिरन में हमेशा लीन रहना चाहिए और अपने को मानव बनाने का प्रय| करना चाहिए। तुम यदि इसमें सफल हो गए तो समझो तुम्हारा जीवन धन्य हो गया। व्यक्ति को कुसंगति की अपेक्षा अकेले रहना उत्तम कार्य है। जब तक संसार अच्छा लग रहा है तब तक भगवान अच्छे नहीं लगते लेकिन जब प्रभु अच्छे लगने लग जाते हैं फिर संसार से मोह माया छूट जाती है।

भागवत की कथा कहती है जिस पर मां की व गुरु की कृपा हो जाती है। उस पर प्रभु की कृपा हो जाती है। जीवन वह नहीं जो लंबा हो जीवन वह अच्छा है, जो सार्थक हो। जीवन कितना जिया यह महत्वपूर्ण नहीं बल्कि जीवन कैसा जिया यह महत्वपूर्ण है। आजकल के लोग झूठ तो बोलते ही हैं साथ ही कसम खाकर झूठ बोलते हैं। मानव बनकर तो धरती में आ गए है पर मानवता नहीं तो जीवन का कोई मतलब नहीं। मानव शरीर में आकर मानवता आ जाना बड़ी बात है। प्रभु की कृपा हो जाए तो गूंगा व्यक्ति बोलने लगता है वही लंगड़ा व्यक्ति दौड़ कर भी पहाड़ को चढ़ सकता है। जब माया जीवन में आती है तो जीव को सुला देती है।

आचार्य श्री ने कहा शिवरीनारायण नगरी ने यह दिखाया है कि इंतजार शबरी की तरह होना चाहिए जिस तरह शबरी माता भगवान श्रीराम का इंतजार की और भगवान श्री राम प्रभु उनके पास पहुंचे ठीक उसी तरह भक्ति करने से एक दिन भगवान अवश्य मिलते हैं। ऋषभदेव जी ने समाज को बताया कि वैराग्य कैसा होना चाहिए। साधु हो जाना वैराग्य है पर सच्चा वैराग्य मन से संसार जगत का निकल जाना है। मन को प्रभु की भक्ति में लगाना ही वैराग्य है। यदि जीवन का अंत हो गया और वासना कामनाएं जिंदा है तो कोई मतलब नहीं लेकिन शरीर का अंत हुए बिना इच्छा समाप्त हो गए तो समझो मोक्ष मिल गया।

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