देश

मानव समाज के पथ प्रदर्शक संत रविदास – लाल सिंह आर्य

मनुष्य कर्म से महान बनता है। अपनी सोच से वह समाज को दिशा देता है। जब मैं भारतीय संस्कृति एवं परम्परा को पढ़ता हूँ और समझने की कोशिश करता हूँ तो अभिभूत हो जाता हूँ। जन्म जननी भारत ने हर वर्ग को इतना ऊँचा स्थान दिया कि उसके आगे सब कुछ गौण हो जाता है। आज मैं संत कवि रविदास जी का स्मरण करते हुए यह कल्पना कर रोमांचित हो जाता हूँ कि वह कैसा समय रहा होगा जब एक बहुत मामूली से व्यक्ति ने अपने सकारात्मक विचारों से समूचे समाज की सोच को बदल दिया। समाज की दशा सुधारने में संत रविदास जैसी पुण्यात्माओं का अमिट योगदान रहा है। संत रविदासजी की पृष्ठभूमि देखें तो हमें समझ में आता है कि कोई व्यक्ति काम या वर्ग से छोटा या बड़ा नहीं होता है बल्कि उसकी सोच कितनी सकारात्मक है और वह समाज की भलाई के लिए किस तरह सोचता है, इससे वह छोटा या बड़ा होता है।
मेरे समकालीन लोगों को संत रविदासजी के बारे में विस्तार से ज्ञात होगा लेकिन मुझे लगता है कि बहुत सारे मेरे नौजवान साथी संत रविदासजी के बारे में कम जानते होंगे। आज इस मंगल अवसर पर संत रविदासजी के बारे में कुछ अल्प ज्ञात सी बातें बताते हुए मुझे हर्ष होगा। संत रविदासजी का जन्म किसी धनाढ्य और कुलीन वर्ग में न होकर एक सामान्य से चर्मकार परिवार में हुआ था। बाल्य अवस्था में उन्होंने अपने पैतृक व्यवसाय को अपनाया। इस बात के लिए उन्हें कभी रंज नहीं था और न ही वे इसे छोटा काम समझते थे। उनका मानना था कि जो भी कार्य किया जाए, पूर्ण मनोयोग के साथ किया जाए तो छोटा लगने वाला काम भी बड़ा बन जाता है। साथ के लोगों ने पवित्र नदी गंगा में स्नान के लिये पूछा तो उन्होंने यह कह कर मना किया कि वे पहले से ही अपने एक ग्राहक को जूता देने का वादा कर चुके हैं तो अब वही उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है। दुबारा निवेदन किया गया तब भी उनका उत्तर था ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’। मतलब शरीर को आत्मा से पवित्र होने की जरूरत है न कि किसी पवित्र नदी में नहाने से। अगर हमारी आत्मा और ह्दय शुद्ध है तो हम पूरी तरह से पवित्र है चाहे हम घर में ही क्यों न नहाये।
रविदास जी आध्यात्मिक व्यक्ति थे। कुछ समय बाद उन्होंने स्वयं को पिता के व्यवसाय से अलग कर लिया। वे समाज में व्याप्त विभिन्न कुरीतियों से खिन्न रहते थे। संत रविदास अस्पृश्यता को नहीं मानते थे। रविदास को भगवान के बारे में बात करने से, साथ ही उनका अनुसरण करने वाले लोगों को अध्यापन और सलाह देने के लिये भी प्रतिबंधित किया गया था। उनके शिक्षक पंडित शारदा नंद उनसे और उनके व्यवहार से बहुत प्रभावित रहते थे। उनका विचार था कि एक दिन रविदास आध्यात्मिक रुप से प्रबुद्ध और महान सामाजिक सुधारक के रूप में जाने जायेंगे। बाद में रविदास जी भगवान राम के विभिन्न स्वरूप राम, रघुनाथ, राजा रामचन्द्र, कृष्णा, गोविन्द आदि के नामों का इस्तेमाल अपनी भावनाओं को उजागर करने के लिये करने लगे और उनके महान अनुयायी बन गये।
सन्त रविदास के अलौकिक ज्ञान ने लोगों को खूब प्रभावित किया, जिससे समाज में एक नई जागृति पैदा होने लगी। सन्त रविदास कहते थे कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सभी नाम परमेश्वर के ही हैं और वेद, कुरान, पुराण आदि सभी एक ही परमेश्वर का गुणगान करते हैं।
कृष्ण, करीम, राम, हरि, राघव, सब लग एकन देखा।
वेद कतेब, कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।
सन्त रविदास का अटूट विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परोपकार तथा सद्व्यवहार का पालन अति आवश्यक है। अभिमान त्याग कर दूसरों के साथ व्यवहार करने और विनम्रता तथा शिष्टता के गुणों का विकास करके ही मनुष्य ईश्वर की सच्ची भक्ति कर सकता है। सन्त रविदास ने अपनी एक रचना में लिखा है –
कह रैदास तेरी भगति दूरी है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।।
उनके विचारों का आशय यही है कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। अभिमान शून्य रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल रहता है जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की पिपीलिका (चींटी) इन कणों को सरलता से चुन लेती है। इसी प्रकार अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है।
मूर्ति-पूजा, तीर्थ-यात्रा जैसे दिखावों में उनका बिल्कुल भी विश्वास न था। वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे।
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
प्राचीन काल से ही भारत में विभिन्न धर्मों तथा मतों के अनुयायी निवास करते रहे हैं। इन सबमें मेल-जोल और भाईचारा बढ़ाने के लिए सन्तों ने समय-समय पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऐसे सन्तों में शिरोमणि रैदास का नाम अग्रगण्य है। वे सन्त कबीर के गुरूभाई थे। उन्होंने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिल-जुल कर प्रेम से रहने का उपदेश दिया। वे स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना कर उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे।
कृष्ण भक्ति के लिए इतिहास में दर्ज मीरा बाई के आध्यात्मिक गुरु के रूप में संत रविदास जी के नाम का उल्लेख मिलता है। मीरा बाई संत रविदास के अध्यापन से बेहद प्रभावित थी और उनकी बहुत बड़ी अनुयायी बनी।
गुरु रविदास जी समाज में अस्पृश्यता के खिलाफ भी लड़े क्योंकि उस समय सामाजिक और धार्मिक स्वरूप बेहद दु:खद था। उन्होंने लोगों को संदेश दिया कि ‘ईश्वर ने इंसान बनाया है न कि इंसान ने ईश्वर बनाया है’ अर्थात इस धरती पर सभी को भगवान ने बनाया है और सभी के अधिकार समान है। इस सामाजिक परिस्थिति के संदर्भ में, संत गुरु रविदास जी ने लोगों को वैश्विक भाईचारा और सहिष्णुता का ज्ञान दिया। वे लोगों को सिखाते कि कोई भी अपने जाति या धर्म के लिये नहीं जाना जाता, इंसान अपने कर्म से पहचाना जाता है। उनके समय में निम्न जाति के लोगों की उपेक्षा होती थी। इस तरह की सामाजिक समयस्याओं को देखकर गुरु जी ने निम्न जाति के लोगों की बुरी परिस्थिति को हमेशा के लिये दूर करने के लिये हर एक को आध्यात्मिक संदेश देना शुरू कर दिया। गुरु रविदास ने हमेशा अपने अनुयायियों को सिखाया कि कभी धन के लालची मत बनो, धन कभी स्थायी नहीं होता, इसके बजाय आजीविका के लिये कड़ी मेहनत करो।
संत रविदासजी ने जीवनपर्यंत मानव समाज की सेवा की और उन्हें भटकने से बचाने की कोशिश की। परम्परागत रूढिय़ों से उन्हें दूर रहने की सलाह दी तो यह भी सिखाया कि जो स्वयं के लिए रूचिकर न हो, वह दूसरों के लिए रूचिकर नहीं हो सकता। समाज को शिक्षित करने पर उनका पूरा जोर था। खासतौर पर वे महिलाओं को शिक्षित करने के प्रति हमेशा समाज को आगे करते रहे। युवाओं से वे हमेशा कहते थे कि युवा अपनी ऊर्जा का उपयोग सकरात्मक कार्यों में करें। नकारात्मक गतिविधियों में ऊर्जा नष्ट करने से समय और प्रतिभा दोनों का नाश होता है। संत रविदास का चिंतन समग्र था। पूरी दुनिया में भाईचारा और शांति की स्थापना के साथ ही उनके अनुयायियों को दी गयी महान शिक्षा के लिये भी संत रविदास हमारे साथ सैकड़ों वर्ष बाद भी मार्गदर्शक के रूप में खड़े हुए हैं। यह हमारी उच्च भारतीय परम्परा है जिसमें हम ज्ञानी और गुरुजनों का सदैव आदर एवं सम्मान करते हैं। संत रविदासजी के बताये गए मार्ग आज भी हमारे लिए प्रेरणादायी हैं और हमें उन पर चलकर एक नए भारत के निर्माण का संकल्प लेना होगा।

Related Articles

Back to top button