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चार कारण जिनके चलते ओपेक के इस अहम ऐलान के बाद भी कच्चे तेल के दाम बढ़ रहे हैं

दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाला ब्रेंट क्रूड आॅयल उत्पादन कटौती में छूट की ओपेक की घोषणा के बावजूद महंगा हो रहा है. बीते शुक्रवार को वियना में ऐलान किया गया कि उत्पादन कटौती के बाद अगली एक जुलाई से तेल की आपूर्ति 10 लाख बैरल बढ़ जाएगी. उस दिन एक बैरल ब्रेंट क्रूड करीब 73 डॉलर में बिक रहा था. उम्मीद थी कि तेल निर्यातक देशों के सबसे बड़े संगठन ओपेक के इस फैसले से कच्चा तेल थोड़ा नरम होगा पर ऐसा हुआ नहीं. सोमवार को हालांकि इसके मूल्य में थोड़ी कमी हुई है, फिर भी यह साढ़े 74 डॉलर पर कारोबार कर रहा है. वैसे जानकार इस गिरावट को अस्थायी प्रवृत्ति बता रहे हैं. अर्थशास्त्रियों के अनुसार 2018 की दूसरी छमाही में कच्चा तेल के महंगे होने के प्रबल आसार हैं. इसकी कई वजहें हैं.

1. सबसे प्रमुख वजह तो यही है कि दुनिया के ज्यादातर प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का प्रदर्शन अगले छह महीनों में और बेहतर होने का अनुमान है. इस चलते ईंधन की मांग का भी बढ़ना तय है. भारत को ही लें तो माना जा रहा है कि अगली दो तिमाहियों में विकास दर सात से आठ फीसदी के बीच रहेगी. वहीं अमेरिका की विकास दर भी तीन फीसदी के करीब रहने की उम्मीद है. इससे वहां तेल की मांग और बढ़ सकती है. दूसरे देशों का भी लगभग यही हाल रहने वाला है. इससे अगले छह महीने में तेल की वैश्विक मांग बढ़ने की संभावना है.

2. ओपेक की ​घोषणा के बावजूद उसके सदस्यों के विरोधाभासी बयानों के चलते आलोचकों को तेल उत्पादन में 10 लाख बैरल रोजाना की बढ़ोतरी पर संदेह है. असल में सऊदी अरब जैसे कुछ देश ही ऐसे हैं जिनके पास पर्याप्त निवेश और तकनीक है जिससे वे उत्पादन में अपने कोटे के अनुरूप वृद्धि करने में सक्षम हैं. वहीं ईरान, वेनेजुएला, इराक, लीबिया और अंगोला जैसे देशों की हालत अच्छी नहीं है जिससे तेल उत्पादन बढ़ाने के लिए पर्याप्त राशि नहीं मिल पा रही है. ऐसे में केवल कुछ दिनों या हफ्तों में इनका उत्पादन बढ़ पाना लगभग असंभव है. इसलिए ज्यादातर जानकारों का मानना है कि ऐसे हालात में ओपेक के रोजाना उत्पादन में छह से सात लाख बैरल की ही बढ़ोतरी हो पाएगी.

3. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मई में ईरान के साथ तीन साल पहले के परमाणु समझौते को रद्द करने का ऐलान कर दिया है. इसके बाद ईरान पर आ​र्थिक प्रतिबंध फिर से लागू कर दिए गए हैं. इससे ईरान का तेल निर्यात काफी घट जाने की आशंका है. हालांकि भारत की कोशिश है कि वह अपनी मुद्रा का इस्तेमाल करके उससे तेल खरीद सके. लेकिन जानकारों के अनुसार दूसरे देशों को होने वाले उसके तेल निर्यात में अनुमान से ज्यादा कमी की संभावना है.

4. उत्तर कोरिया और अमेरिका के राष्ट्र प्रमुखों के बीच हाल में बातचीत होने के बावजूद दुनिया के कई इलाकों में भूराजनीतिक अस्थिरता का खतरा अभी बना हुआ है. इसमें डोनाल्ड ट्रंप की अनिश्चित कूटनीति का खासा योगदान माना जा रहा है. ऐसे में अगले कुछ महीनों के दौरान भूराजनीतिक हालात के गड़बड़ाने पर भी कच्चा तेल महंगा हो सकता है. असल में देशों के आपसी संबंध तनावपूर्ण हो जाने पर कच्चे तेल की आपूर्ति प्रभावित हो जाती है.

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